भारत में प्राचीन काल से ही पुरुष प्रधान समाज का बोलबाला रहा है तथा महिलाओं का स्थान हमेशा से ही पुरुषों के बाद माना जाता था। शायद यही सोच उन सदस्यों के दिमाग में रही होगी जब उन्होंने सन 1956 में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम पारित किया था। इसके पीछे मंशा तो यही रही होगी कि शादी के बाद बेटियां तो पराई हो जाती है इसलिए पैतृक संपत्ति में उनके हक़ की कोई जरूरत नहीं समझी गयी।
न्यायालय में इस अधिनियम से संबंधित एक प्रश्न का उत्तर देते हुए न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि "एक बेटा तब तक एक बेटा होता है जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती लेकिन एक बेटी जीवन भर एक बेटी ही रहती है"
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कानूनी पृष्ठभूमि :-
आइ ये जरा इससे संबंधित इतिहास के पन्नों को पलट कर देखते है। "हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956" से पहले महिलाओं से संबंधित कानून परंपरागत प्रथाओं के हिसाब से थे तथा अनेक कानून व्यक्ति की जाति पर भी निर्भर करते थे अर्थात जाति के हिसाब से कानून अलग अलग थे तथा अनेक क्षेत्रों के हिसाब से भी अलग-अलग नियम देखने को मिलते थे। इसके कारण कानून में भी विविधता आनी तय थी। इसलिए अलग-अलग क्षेत्र-जाति की महिलाओं के लिए अलग-अलग स्कूल तथा शिक्षा के भी भिन्न-भिन्न नियम थे।
The Hindu Law of Inheritance Act 1929 भी एक इसी विषय से संबंधित कानून था। इस अधिनियम के बल पर ही महिलाओं के भी विरासत में हिस्सा होने की बात को तूल मिली। यही वो पहला कानून था जिसकी सहायता से तीन महिलाओं - बेटे की बेटी, बेटी की बेटी तथा बहिन को वारिसों में स्थान मिला।
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों तथा सिखों की बीच के अनिच्छित उत्तराधिकार में कुछ संशोधन किए गए तथा यह अधिनियम उस स्थिति में प्रभावकारी है जब बिना वसीयतनामा के किसी व्यक्ति का परलोकगमन हो जाता है।
2005 के संशोधन के पहले हिन्दू उत्तराधिकार नियम के तहत अगर किसी हिन्दू की मृत्यु इस अधिनियम के पारित होने के बाद होती है तथा उसका हक़ किसी मिताक्षरा विधि वाले परिवार में है तो उसका वह हक़ उसके वसीयतीय या निर्वसीयतीय रूप से न्यायसंगत हो जाएगा।
इसके अनुसार किसी भी महिला को मिताक्षरा Coparcenery प्रॉपर्टी का हिस्सा नहीं माना गया था क्योंकि उनको समान वंशावली से नहीं माना गया था। जिस व्यक्ति कि मृत्यु होती थी उसकी विधवा पत्नी, भाई बहिन या फिर अन्य किसी भी उत्तराधिकारी को पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा नहीं दिया गया था जबकि केवल Coparcensers के जीवित वंशज को ही इसमें उत्तराधिकार दिया गया था।
लगभग 50 वर्षों के लम्बे अर्से के बाद सरकार ने 2005 में एक अधिनियम पारित किया जिसके अनुसार Coparcenary प्रॉपर्टी में लैंगिक भेदभाव को पूर्णतः खत्म किया गया। इससे पहले हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में बेटियों को बेटों के समान संपत्ति के हिस्से का उत्तराधिकारी नहीं माना गया था। Coparcenary संपत्ति किसी भी हिन्दू को उसके पिता, दादा या पर दादा से विरासत में मिली संपत्ति है। शब्द Coparcener का प्रयोग उस व्यक्ति के लिए किया जाता है जिसका पैतृक संपत्ति पर जन्मसिद्ध अधिकार होता है। इस हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत पुराने हिन्दू अधिनियम में कुछ संशोधन किया गया था।
हालाँकि केंद्र सरकार ने इस 2005 के संशोधन अधिनियम पर ऑब्जेक्शन भी उठाया तथा यह दावा किया कि एक हिन्दू परिवार के Coparcener को विभाजन का पूरा अधिकार है। इससे तहत इस नियम में 20 दिसंबर 2004 की एक कट-ऑफ तारीख तय कर दी गयी ताकि किसी प्रकार की दुविधा से बचा जा सकें। कोर्ट ने भी इस तारीख पर मुहर लगा दी तथा इस बात पर भी ध्यान दिया कि अगर एक बेटी एक विभाजन या संपत्ति में हिस्से की इच्छा जाहिर करती है तो इसे केवल पारिवारिक निपटान के आधार पर निश्चित नहीं किया जा सकता जबकि एक पूरी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है तथा अगर किसी प्रकार का समझौता होता है तो भी इसमें पब्लिक डाक्यूमेंट्स का संलग्न होना जरूरी है।
हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 : सेक्शन 6
हिन्दू उत्तराधिकार ( संशोधन ) अधिनियम एक बहुत महत्वपूर्ण अधिनियम है क्योंकि इसी के कारण ही पहले के अधिनियम में उपस्थित अनेक प्रकार के लैंगिक भेदभाव को दूर करने की कोशिश की गयी तथा मिताक्षरा coparcenary प्रॉपर्टी में बेटियों के अधिकार को सुनिश्चित किया गया।
2005 के संशोधन के बाद आए बदलाव :-
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इससे पहले के प्रावधान में Coparcencary प्रॉपर्टी में बेटियों का अधिकार नहीं था लेकिन इसमें संशोधन कर दिया गया है।
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एक Coparcener की बेटी भी उसके बेटे के समान ही एक Coparcener बन जाएगी।
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यदि हिन्दू व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो Coparcener संपत्ति का बँटवारा बेटों तथा बेटियों में समान रूप से होगा।
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कोई भी बेटी HUF (Hindu Undivided Family) का बँटवारा करने की मांग कर सकती है।
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कोई भी बेटी अपनी इच्छा से Coparcenary प्रॉपर्टी में अपना हिस्सा खत्म करने की भी हक़दार है।
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अगर किसी महिला Coparcener की मृत्यु बँटवारे से पहले हो जाती है तो उस Coparcener के बेटे संपत्ति के बँटवारे में उसी प्रकार से हक़दार होंगे मानो कि उसकी मृत्यु से ठीक पहले बँटवारा हुआ हो।
सेक्शन 6 की ऍप्लिकेबिलिटी के बारे में संदेह :-
Prakash and others vs Phulavati (2016) के एक मामले में शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह संशोधन अधिनियम 9/9/2005 के अनुसार सभी जीवित Coparceners की जीवित बेटियों के लिए मान्य है चाहे उन बेटियों की जन्म तिथि कुछ भी हो। इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि अगर कोई Coparcener (पिता) 9 सितम्बर से पहले ही इस दुनिया को छोड़ चुके थे तो उसकी जीवित बेटियों का Coparcenary संपत्ति में किसी प्रकार का अधिकार नहीं होगा।
Danamma vs Amar (2018) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि अगर पिता की मृत्यु 9 सितम्बर 2005 से पहले हुई है तथा एक पुरुष Coparcener ने इस तारीख से पहले विभाजन के लिए मुकदमा किया था जो पेंडिंग है तो महिला Coparcener प्रॉपर्टी में हिस्से की हक़दार होगी।
उपरोक्त 2 उदाहरणों की सहायता से शायद 2005 के संशोधन से सम्बन्धित आपकी सारी दुविधाओं दूर हो गयी होगी।
इस संशोधन अधिनियम का उद्देश्य हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में 2 मुख्य संशोधन करने का था -
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जिस प्रावधान में बेटियों को Coparcenary प्रॉपर्टी में हिस्सा नहीं दिया गया था उसको संशोधित किया गया।
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अधिनियम के सेक्शन 3 में संशोधन किया गया अगर किसी संयुक्त परिवार में पुरुष उत्तराधिकारी बँटवारे की बात नहीं करते है तो एक महिला उत्तराधिकारी उनसे पहले भी बँटवारे की मांग कर सकती है।
हाल ही में Vineeta Sharma vs Rakesh Sharma 2020 के केस में सुप्रीम कोर्ट पीठ के निर्णय के अनुसार अगर पिता की मृत्यु संशोधन अधिनियम 2005 के पहले हो गयी है तो भी बेटियों को संपत्ति में बेटों की तरह ही अधिकार मिलेगा।
9 सितम्बर 2005 के अनुसार जीवित Coparceners की जीवित बेटियों को यह अधिकार दिया गया है चाहे उन बेटियों की जन्मतिथि भी कुछ भी हो उससे फर्क नहीं पड़ता।
निष्कर्ष :-
अतः हम यह निष्कर्ष निकल सकते है कि बेटियों को भी बेटों के समान ही पैतृक संपत्ति में हिस्सा दिया गया है भले ही उनके पिता की मृत्यु 9 सितम्बर 2005 के पहले ही क्यों न हुई हो। यह एक अच्छी खबर भी है क्योंकि इससे लैंगिक भेदभाव को दूर किया जा सकेगा तथा बेटियां भी कंधे से कन्धा मिलकर हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकेगी जिससे देश का सर्वांगीण विकास हो पाएगा।
धन्यवाद !!