हम सभी के मन में बचपन से ही यह दुविधा रहती है कि RBI बहुत सारे नोट क्यों नहीं छापती जिससे सभी लोग अमीर हो जाए तथा सब के पास पैसा ही पैसा हो जाए। लेकिन हकीक़त में ऐसा नहीं होता।
आइये एक उदाहरण से इसको समझते है -
माना कि किसी देश ABC में केवल 2 ही नागरिक रहते है जिनकी वार्षिक आय 10 रूपये है तथा इस देश में केवल चावल का ही उत्पादन होता है।
उदाहरण के लिए माना कि पुरे देश में वस्तु के रूप में केवल 2 किलो चावल का ही उत्पादन होता है तथा 1 किलो चावल खरीदने के लिए 10 रूपये प्रति किलो का भुगतान करना पड़ेगा।
उस देश की सरकार अगर अचानक से ज्यादा पैसे छापने शुरू कर दे तथा आय 10 रूपये से बढ़कर 20 रूपये हो जाए लेकिन चावल की सप्लाई उतनी ही (2 किलो) रहे तो हम कह सकते है कि चावल की मांग में वृद्धि होने से चावल की रेट बढ़कर 10 रूपये प्रति किलो से 20 रूपये प्रति किलो पहुँच जाएगी।
अगर हम दोनों स्थितियों की चर्चा करे तो हम पाएंगे कि वस्तु की मात्रा में कोई बदलाव नहीं आया है अर्थात अभी भी 2 किलो चावल ही उत्पादित हो रहा है लेकिन ज्यादा पैसा छापने के कारण कीमत में वृद्धि हुई है तथा कीमत 10 रूपये से 20 रूपये प्रति किलो पहुंच गयी है। अतः हम यह निष्कर्ष निकल सकते है कि छापे जाने वाला पैसा हमेशा देश में उपलब्ध वस्तुओं तथा सेवाओं के अनुपात में ही होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो इन्फ्लेशन के कारण देश की इकॉनमी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
नई करेंसी प्रिंट करते समय ध्यान रखने योग्य फैक्टर्स :-
Inflation:
जैसे-जैसे समय बीतता जाता है वैसे-वैसे वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में भी वृद्धि होती रहती है। इसे ही हम Inflation या मुद्रास्फीति के नाम से जानते है। यानि इसका सीधा-सा मतलब ये हुआ कि हमे वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए ज्यादा मूल्य का भुगतान करना पड़ेगा। आपको याद होगा कि हमारे बचपन में 100 रूपये में जितना सामान किराने की दुकान में मिलता था उतना आज 100 रूपये में नहीं मिल पाता है। इसलिए हम कह सकते है कि इन्फ्लेशन से हमारे खर्चे बढ़ जाते है तथा हमारे पैसों की Purchaing Power कम हो जाती है।
अगर आपने पढ़ रखा हो या कहीं सुन रखा हो तो आपको पता होगा कि आज से कुछ सालों पहले 3 अण्डों की कीमत 100 बिलियन डॉलर्स 'ज़िम्बाब्वे बैंक नोट' थी।
सकल घरेलू उत्पाद:
इसको जीडीपी के नाम से भी जाना जाता है। किसी भी देश की भौगोलिक सीमाओं के अंदर एक विशेष समय-सामान्यतः एक साल में उत्पादित कुल वस्तुओं तथा सेवाओं के अंतिम मूल्य को ही जीडीपी के नाम से जानते है। जीडीपी वृद्धि दर किसी भी देश की आर्थिक परफॉरमेंस के मापन के लिए एक महत्वपूर्ण पैमाना है।
जीडीपी के कारण देश में प्रिंट किए जाने वाले पैसे की मात्रा भी प्रभावित होती है। सरकार उसी वैल्यू जितना पैसा छापती है जितनी वैल्यू इसकी इकॉनमी या जीडीपी में बढ़ी है अतः देश की उत्पादकता में वृद्धि होने से इसकी जीडीपी में भी वृद्धि होती है तथा इससे सरकार को ज्यादा पैसे छापने का मौका मिलता है क्योंकि छापा गया पैसा उन अतिरिक्त वस्तुओं तथा सेवाओं के व्यापार के लिए काम आता है।
इसलिए हम सारांश के आधार पर यह कह सकते है कि सरकार लोगों को उतनी ही करेंसी प्रदान करती है जितनी कि जीडीपी तथा इन्फ्लेशन से वैल्यू जेनेरेट होती है।
न्यूनतम रिज़र्व सिस्टम:
देश में जारी होने वाली करेंसी रिज़र्व सिस्टम के आधार पर जारी होती है -
यहां पर रिज़र्व शब्द का मतलब हम इन 3 बिंदुओं की सहायता से समझ सकते है -
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बुलियन रिज़र्व (Bullion Reserves)
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विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves)
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बैलेंस ऑफ़ पेमेंट (BOP)
भारत में करेंसी की सप्लाई RBI द्वारा उपरोक्त तीनों बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए की जाती है। नई करेंसी जारी करने के लिए आरबीआई मिनिमम रिज़र्व सिस्टम को फॉलो करती है। इस मिनिमम रिज़र्व सिस्टम को सन 1956 से फॉलो किया जा रहा है।
MRS के अनुसार आरबीआई को गोल्ड बुलियन, गोल्ड के सिक्के तथा विदेशी मुद्रा के रूप में ₹ 200 करोड़ का न्यूनतम रिज़र्व रखना पड़ता है। इन 200 करोड़ में से 115 करोड़ गोल्ड बुलियन या गोल्ड के सिक्कों के रूप में होने चाहिए। MRS का मुख्य उद्देश्य बढ़ते हुए ट्रांसक्शन्स की स्थिति में पैसों की सप्लाई को बढ़ाने का था। RBI देश की इकनोमिक ग्रोथ तथा जनता की आवश्यकता के अनुसार कुछ नियमों का पालन करती है तथा उसी हिसाब से करेंसी जारी होती है।
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सॉलिड तथा Mutilated हुए नोट:
ज्यादा उपयोग में लेने के कारण कभी-कभार नोट काफी गंदे हो जाते है या फिर कई बार एक ही नोट के 2 टुकड़ो को जोड़कर उनको चिपका दिया जाता है। इस प्रकार के नोट्स को Solid नोट के नाम से जाना जाता है।
अगर किसी नोट का एक हिस्सा गायब है या फिर 2 से ज्यादा टुकड़ों को जोड़कर बनाए गए नोट भी कई बार हमारे दैनिक जीवन में देखने को मिलते है। इस प्रकार के नोट्स को Mutilates Notes कहते है।
अब चूँकि सॉलिड तथा Mutilates नोट्स सर्कुलेशन के लिए उचित नहीं होते इसलिए RBI के रिकार्ड्स में पर्याप्त लेखाजोखा होने के बाद इन नोट्स को सर्कुलेशन से निकाल लिया जाता है। इसके बाद इन नोट्स को आरबीआई के अधिकारीयों की कड़ी सुरक्षा तथा निगरानी में क्षेत्रीय RBI ऑफिस के Incinerators में जला दिया जाता है। चूँकि आरबीआई के पास इन नोट्स का पूरा लेखाजोखा रहता है इसलिए आरबीआई उतने ही नए नोट छाप देती है।
इन्फ्लेशन, जीडीपी तथा जलाए गए नोटों का पूरा ब्यौरा तैयार करके आरबीआई मैनेजमेंट डिपार्टमेंट तथा नोट जारी करने वाला विभाग केंद्र सरकार के सामने सारी जानकारी पेश करेगा तथा यहां से अप्रूवल मिलने के बाद प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा।
आरबीआई तथा केंद्र सरकार के बीच तालमेल:
देश में जारी होने वाले नोटों के मूल्य, डिज़ाइन तथा सिक्योरिटी के बारे में आरबीआई केंद्र सरकार के साथ चर्चा करती है तथा इसके बाद ही नोट प्रिंट होते है।
सिक्कों का निर्माण टकसाल में होता है। 1 रूपये के सिक्के (पहले 1 रूपये का नोट) के जारी होने से सम्बंधित सभी अधिकार भारत सरकार के पास होते है।
करेंसी की जरूरत का पता लगाने का सिस्टम:
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जीडीपी का अनुमान लगाने के लिए सरकार, CMIE तथा आरबीआई की अपनी रिसर्च शाखा सहायता लेती है (इसमें इन्फ्लेशन तथा जीडीपी जैसे तथ्यों का ध्यान रखा जाता है)। (D)
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नोट स्टॉक अकाउंट की सहायता से आरबीआई तथा बैंक्स के कैश के बारे में जानकारी इकठ्ठी की जा सकती है। (N)
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सॉलिड नोट्स के नष्ट होने के कारण उन नोट्स की जगह नए नोट्स जारी करने पड़ते है। (R)
कुल छापे जाने वाले नोट्स की संख्या = D-N+R
भारत में आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए आरबीआई 5% अतिरिक्त नोट प्रिंट करके रखती है। इसका अनुमान लगाने के लिए क्षेत्रियों ऑफिसों तथा बैंकों से जानकारी ली जाती है तथा आरबीआई ऑफिस मुंबई में सम्पूर्ण जानकारी को इकठ्ठा करके आगे की प्रक्रिया को पूरा किया जाता है।
इसके बाद नोटों को प्रिंट करवाने के लिए प्रिंटिंग प्रेस को आर्डर दिया जाता है तथा इस हिसाब से चारों Quarters के लिए नोटों की प्रिंटिंग की जाती है। यह सारी प्रक्रिया RBI Issue Departmen की देखरेख में पूर्ण होती है।
हमें आशा है कि अब आपकी अतिरिक्त करेंसी की प्रिंटिंग से सम्बंधित सारी दुविधाएं दूर हो गयी होगी तथा आपको इससे सम्बंधित सारी जानकारी मिल गयी होगी।
धन्यवाद !!